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निर्देश: नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए । 
हेंवल घाटी के गाँववासियों ने चीड़ के पेड़ों के हो रहे विनाश के विरुद्ध जुलूस निकाले । घास-चारा लेने जा रही महिलाओं ने इन पेड़ों से लीसा टपकाने के लिए लगाए गए लोहे निकाल दिए व उनके स्थान पर मिट्टी की मरहम-पट्टी कर दी । महिलाओं ने पेड़ों का रक्षा-बंधन भी किया । आरंभ से ही लगा कि वृक्ष बचाने में महिलाएँ आगे आएँगी । वन कटने का सबसे अधिक कष्ट उन्हीं को उठाना पड़ता है, क्योंकि घास-चारा लाने के लिए उन्हें और दूर जाना पड़ता है । कठिन स्थानों से घास-चारा एकत्र करने में कई बार उन्हे बहुत चोट लग जाती है । वैसे भी पहाड़ी रस्तों पर घास-चारे का बोझ लेकर पाँच-दस कि० मी० या उससे भी ज्यादा चलना बहुत कठिन हो जाता है । इस आंदोलन की बात ऊँचे अधिकारियों तक पहुँची तो उन्हें लीसा प्राप्त करने के तौर-तरीकों की जाँच करवानी पड़ी । जाँच से स्पष्ट हो गया कि बहुत अधिक लीसा निकालने के लालच में चीड़ के पेड़ों को बहुत नुकसान हुआ है । इन अनुचित तरीकों पर रोक लगी । चीड़ के घायल पेड़ों को आराम मिला, एक नया जीबन मिला । पर तभी खबर मिली कि इस इलाके के बहुत से पेड़ों को कटाई के लिए नीलाम किया जा रहा है । लोगों ने पहले तो अधिकारियों को ज्ञापन दिया कि जहाँ पहले से ही घास-चारे का संकट है, वहाँ और व्यापारिक कटान न किया जाए । जब अधिकारियों ने गाँववासियों कि मांग पर ध्यान न देते हुए नरेंद्रनगर में नीलामी कि घोषणा कर दी, तो गांववासी जुलूस बनाकर वहाँ नीलामी का विरोध करते हुए पहुँच गए । वहाँ एकत्र ठेकेदारों से हेंवल घाटी कि महिलाओं ने कहा, “आप इन पेड़ों को काटकर हमारी रोजी-रोटी मत छीनो । पेड़ कटने से यहाँ बाढ़ व भू-स्खलन का खतरा भी बढ़ जाएगा ।” कुछ ठेकेदारों ने तो वास्तव में यह बात मानी पर कुछ अन्य ठेकेदारों ने अदवानी और सलेत के जंगल खरीद लिए ।

वन काटने का सबसे अधिक कष्ट महिलाओं को क्यों उठाना पड़ता है?

[CTET Dec 2018 Paper 1(English - I, Hindi - II)]
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